Wednesday, October 7, 2009


हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनेक नामों से पुकारा जाता है
  • रूद्र - रूद्र से अभिप्राय जो दुखों का निर्माण व नाश करता है।
  • पशुपतिनाथ - भगवान शिव को पशुपति इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह पशु पक्षियों व जीवआत्माओं के स्वामी हैं
  • अर्धनारीश्वर - शिव और शक्ति के मिलन से अर्धनारीश्वर नाम प्रचलित हुआ।
  • महादेव - महादेव का अर्थ है महान ईश्वरीय शक्ति।
  • भोला - भोले का अर्थ है कोमल हृदय, दयालु व आसानी से माफ करने वाला। यह विश्वास किया जाता है कि भगवान शंकर आसानी से किसी पर भी प्रसन्न हो जाते हैं।
  • लिंगम - यह रोशनी की लौ व पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है।
  • नटराज - नटराज को नृत्य का देवता मानते है क्योंकि भगवान शिव तांडव नृत्य के प्रेमी हैं।शान्ति नगर स्थित शिवशक्ति दुर्गा मंदिर के पं. सोहनानंद जी महाराज ने बताया कि शिवरात्रि को रात्रि में चार बार हर तीन घंटे बाद रुद्राभिषेक किया जाता है। इससे जातक का कालसर्प दोष व सभी गृहदोष दूर हो जाते हैं।
सर्वार्थ सिद्धि योग में करवा चौथ
भास्कर न्यूज Tuesday, October 06, 2009 08:33 [IST]
उज्जैन. महिलाएं करवाचौथ का व्रत अपने सुहाग की दीर्घायु और खुशहाल दाम्पत्य जीवन के लिए करती हैं। बुधवार (7 अक्टूबर) को चतुर्थी पर महिलाएं दिनभर व्रत रखेंगी। रात में शिव-पार्वती का पूजन करने के साथ चौथ माता की कथा सुनेंगी और चंद्रमा निकलने पर पूजन के बाद करवे का जल लेकर भोजन ग्रहण करेंगी। कई जगह सामूहिक पूजन भी होगा।


ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बेवाला के अनुसार चतुर्थी (9 घटी, 4 पल) अर्थात 10 घंटे 2 मिनट रहेगी, जो बुधवार को प्रात: 10.30 से प्रारंभ होकर रात 8.30 बजे तक रहेगी। करवाचौथ पर्व कर्णयोगाहा, भरणी नक्षत्र व सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ 32 साल बाद आ रही है। इसके पहले यह योग 1977 में बना था। बुधवार दोपहर १२.१क् बजे गुरु मार्गी होंगे और 3.15 बजे से सर्वार्थ सिद्धि योग शुरू होगा, जो चंद्र दर्शन तक प्रभावशील रहेगा।


चंद दर्शन- पंचाग के मुताबिक बुधवार को चंद्र दर्शन शाम करीब 7.40 पर होगा। व्रत का पूर्ण लाभ लेने के लिए महिलाएं रात 10.30 बजे बाद चंद्र पूजन करें क्योंकि इस समय चंद्रमा 13 से 16 कला में होता है। ज्योतिषीय गणना में चंद्र पूजन इन्हीं कलाओं में श्रेष्ठ माना गया है।

करवा चौथ

करवा चौथ भारत में मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन का व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं। इस दिन भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती हैं।
शुरूआत और महतव : इस पर्व की शुरूआत एक बहुत ही अच्छे विचार पर आधारित थी। मगर समय के साथ इस पर्व का मूल विचार कहीं खो गया और आज इसका पूरा परिदृश्य ही बदल चुका है।
पुराने जमाने में लड़कियों की शादी बहुत जल्दी कर दी जाती थी और उन्हें किसी दूसरे गांव में अपने ससुराल वालों के साथ रहना पड़ता था। अगर उसे अपने पति या ससुराल वालों से कोई परेशानी होती थी तो उसके पास कोई ऐसा नहीं होता था जिससे वो अपनी बात कह सके या मदद मांग सके। उसके अपने परिवार वाले और रिश्तेदार उसकी पहुंच से काफी दूर हुआ करते थे। उस जमाने में ना तो टेलीफोन होता था, ना बस और ना ही ट्रेन।
इस तरह एक रिवाज की शुरुआत हुई कि शादी के समय जब दुल्हन अपने ससुराल पहुंचेगी तो उसे वहां एक दूसरी औरत को दोस्त बनाना होगा जो उम्र भर उसकी बहन या दोस्त की तरह रहेगी। ये धर्म-सखी या धर्म-बहन के जैसा होगा। उनकी मित्रता एक छोटे से हिन्दू पूजन समारोह द्वारा शादी के समय ही प्रमाणित की जायेगी। एक बार दुल्हन और इस औरत के धर्म-सखी या धर्म-बहन बन जाने के बाद जिन्दगी भर इस रिश्ते को निभायेंगी। वे आपस में सगी बहनों जैसा बर्ताव करेंगी।
बाद में किसी तरह की परेशानी होने पर, चाहे वो पति या ससुराल वालों की तरफ से हो, ये दोनों औरतें आपस में बात कर सकती हैं या एक दूसरे की मदद कर सकती हैं। एक दुल्हन और उसकी धर्म-सखी (धर्म-बहन) के बीच इस मित्रता (सम्बन्ध) को एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
इस तरह करवा चौथ की शुरुआत हुई। पति की भलाई के लिए पूजा और व्रत इसके बहुत बाद में शुरु हुआ। ऐसी आशा है कि इस पर्व की महत्ता को और बढ़ाने के लिए इसे पुरानी कथाओं के साथ जोड़ दिया गया।
मूलत: करवा चौथ इस धर्म-सखी (धर्म-बहन) के रिश्ते को फिर से नवीन रूप देने और मनाने का सालाना पर्व है। ये उस समय की एक सर्वश्रेष्ठ सामाजिक और सांस्कृतिक महानता थी जब दुनिया में बातचीत के तरीकों की कमी थी और आना-जाना इतना आसान नहीं था।
परम्परागत कथा (रानी वीरवती की कहानी): बहुत समय पहले वीरवती नाम की एक सुन्दर लड़की थी। वो अपने सात भाईयों की इकलौती बहन थी। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवा चौथ के मौके पर वो अपने मायके आ गई। उसने भी करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह बेताबी से चांद के उगने का इन्तजार करने लगी। उसके सातों भाई उसकी ये हालत देखकर परेशान हो गये। वे अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। उन्होंने वीरवती का व्रत समाप्त करने की योजना बनाई और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। वीरवती ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर खाना खा लिया। रानी ने जैसे ही खाना खाया वैसे ही समाचार मिला कि उसके पति की तबियत बहुत खराब हो गई है।
रानी तुरंत अपने राजा के पास भागी। रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिले। पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है क्योंकि उसने नकली चांद देखकर अपना व्रत तोड़ दिया था। रानी ने तुरंत क्षमा मांगी। पार्वती देवी ने कहा, ''तुम्हारा पति फिर से जिन्दा हो जायेगा लेकिन इसके लिये तुम्हें करवा चौथ का व्रत कठोरता से संपन्न करना होगा। तभी तुम्हारा पति फिर से जीवित होगा।'' उसके बाद रानी वीरवती ने करवा चौथ का व्रत पूरी विधि से संपन्न किया और अपने पति को दुबारा प्राप्त किया।
इस पर्व से संबंधित अनेक कथाएं प्रसिध्द हैं जिनमें सत्यवान और सावित्री की कहानी भी बहुत प्रसिध्द है।

Monday, October 5, 2009

गायत्री महामंत्र


गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
भावार्थ: उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
ओम् भूभुर्व: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।ड्ढr गायत्री दो शब्दों ‘गा’ और ‘त्रायते’ के योग से बना है। ‘गा’ का अर्थ गाना अथवा प्रार्थना करना और त्रायत का अर्थ है दु:खों, कष्टों और समस्याओं से मुक्ित। जो भी गायत्री मंत्र के अर्थ को जान लेता है तथा उसके उपदेशों को अपने व्यावहारिक जीवन में सत्यनिष्ठा और भक्ितभाव पूर्वक उतारता है, वह निश्चय ही कठिन से कठिन बाधाओं और समस्याओं को पार करता हुआ जीवन में सदा सर्वत्र आगे बढ़ता है। गायत्री मंत्र परमेश्वर प्राप्ति की तीनों प्रक्रियाओं अर्थात् स्तुति, प्रार्थना और उपासना के लिए है। इस मंत्र को सावित्री मंत्र, गुरुमंत्र और महामंत्र भी कहते हैं। ‘ओइम्’ ईश्वर अर्थात् ब्रह्मा का मुख्य नाम है। ईश्वर सृष्टि रचयिता और सर्वपालक हैं। प्राणस्वरूप तथा प्राणदाता परमेश्वर द्वारा प्रदत्त जीवनदायिनी शक्ित को ‘भू:’ कहा गया है। ईश्वर की परम चेतना शक्ित को ‘भुव:’ कहा गया है। परमेश्वर इस अनुपम शक्ित के द्वारा जीवमात्र के दु:ख, कष्ट, पीड़ा और निराशा को दूर कर ब्राह्मंड को नियंत्रित तथा संचालित करता है। ‘सविता’ देव हमें सुपथ पर चलन के लिए बु िदे। परमेश्वर प्रदत्त परमानंद ‘स्व:’ है। सृष्टि रचयिता, संचालक, जीवन प्रदाता, सर्वदु:खनाशक परमेश्वर परमानन्द से परिपूर्ण है। अत: परमेश्वर के विशेष गुणों को दर्शाने वाले भू, भुव: और स्व: शब्दों के द्वारा हम परमेश्वर की स्तुति करते हैं। ‘वरेण्यम’ अर्थात् हम ईश्वर की महानता को स्वीकार करते हैं। ‘भर्गो देवस्य धीमहि’ का उच्चारण कर हम उस देदीप्यमान परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारे अज्ञान एवं दोषों को दूर करें। ‘धियो यो न: प्रचोदयात’ के द्वारा हम उस सृष्टिपालक परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारी बु िऔर मन को श्रेष्ठ और उत्तम कर्मो में लगाएं। यह मंत्र हमारी बु िको बुमित्ता की ओर ले जाता है और कर्मो को प्रज्वलित करता है। लोकमान्य तिलक के शब्दों में यदि कुमार्ग का त्याग कर सन्मार्ग का अनुसरण करना चाहते हैं तो नित्य प्रति गायत्री मंत्र का जप कीजिए। यह किसी भी अवसर के लिए अत्यधिक उत्तम मंत्र है।ं
Gayatri mahamantra Hindus key 4 Vedos mein sey 3 vedos mein likha gaya hai..so it is really very powerful mantra like MAHAMRITUNJAY MANTRA
By S.P.Kulsari (my astro friend)

Whose responsibility is it to give moral education school or home?

Followers